जानिए 'वास्तु' क्या है और इसके लाभ क्या हैं ??
संस्कृत में कहा गया है कि...
गृहस्थस्य क्रियास्सर्वा न सिद्धयन्ति गृहं विना।
वास्तु का शाब्दिक अर्थ " निवास स्थान " होता है। इसके सिद्धांत वातावरण में जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश तत्वों के बीच एक सामंजस्य स्थापित करने में मदद करते हैं। जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश इन पाँचों तत्वों का हमारे कार्य प्रदर्शन, स्वभाव, भाग्य एवं जीवन के अन्य पहलुओं पर पड़ता है। यह विद्या भारत की प्राचीनतम विद्याओं में से एक है जिसका संबंध दिशाओं और ऊर्जाओं से है। इसके अंतर्गत दिशाओं को आधार बनाकर आसपास मौजूद नकारात्मक ऊर्जाओं को कुछ इस तरह सकारात्मक किया जाता है, ताकि वह मानव जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव ना डाल सकें।
उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम ये चार मूल दिशाएं हैं। वास्तु विज्ञान में इन चार दिशाओं के अलावा 4 विदिशाएं हैं। आकाश और पाताल को भी इसमें दिशा स्वरूप शामिल किया गया है। इस प्रकार चार दिशा, चार विदिशा और आकाश पाताल को जोड़कर इस विज्ञान में दिशाओं की संख्या कुल दस माना गया है। मूल दिशाओं के मध्य की दिशा ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य को विदिशा कहा गया है।
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