शनि दंड के नही बल्कि न्याय का देवता हैं।


 शनि ग्रह का ज्योतिष में महत्व

शनि नवग्रहों में से दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है, परंतु बहुत धीमी चाल से चलने वाला ग्रह है। इसकी धीमी गति के कारण ही इस गृह का नाम शनैश्चर पड़ा। सूर्य पुत्र शनि को न्याय का देवता भी कहा गया है। शनि को मृतुलोक का न्यायधीश भी कहते है। जो जातक अच्छे कर्म करता है शनि उन्हे अच्छे फल देता है तथा जो जातक बुरे कर्म करता है उसका बुरा फल देता है।

शनि चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों का प्रितिनिधित्व करता है एवं शनि की साढ़ेसाती व ढईया में कर्मो फल देता है। यह तुला राशि मे उच्च का व मेष राशि मे नीच का होता है। शनि ग्रह के फल अन्य ग्रहों की अपेक्षा ज्यादा समय तक प्रभावी रहते है। शनि मोक्ष का कारक है, तपस्वी एवम् त्यागी देव है। हमेशा गुरु एवम् ब्रह्मा की सेवा करता है और शनि के फलों में कोमलता एवम् कठोरता दोनो होते है। शनि अपने सभी कार्य राहु एवम् केतु से करवाता है। राहु कठोरता है व कोमलता केतु है।

  • यदि शनि अशुभ फल दे रहा हो तो काले व सफेद तिल का दान करे। पीपल के पेड़ पर सरसों के तेल का दीपक लगाए।
  • यदि शनि लग्न में हो तो जातक को अपने नाम से मकान नही बनवाना चाहिए । जातक को बंदरो को भुने चने व गुड़ खिलाने चाहिए।
  • यदि शनि चतुर्थ भाव मे हो और अशुभ फल दे रहा हो तो जातक को कुएं में दूध डालना चाहिए। हरे व काले कपड़े न पहनें।
  • यदि शनि सप्तम भाव मे अशुभ फल दे रहा हो तो शहद से भरा हुआ मिट्टी का बर्तन किसी वीरान जगह पर रख आएं।
  • यदि शनि दसम भाव मे अशुभ फल दे तो केले तथा चने की दाल मंदिर में दान करे।



No comments

Powered by Blogger.